Lekhika Ranchi

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उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद


गोदान मुंशी प्रेमचंद


प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रही थी। दोनों लड़कियाँ बाप के पाँवों से लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल देता; पर ज्योंही धनिया के मुँह से कोई गाली निकल जाती, होरी अपने हाथ छुड़ाकर उसे दो-चार घूँसे और लात जमा देता। उसका बूढ़ा क्रोध जैसे किसी गुप्त संचित शक्ति को निकाल लाया हो। सारे गाँव में हलचल पड़ गयी। लोग समझाने के बहाने तमाशा देखने आ पहुँचे। शोभा लाठी टेकता खड़ा हुआ। दातादीन ने डाँटा -- यह क्या है होरी, तुम बावले हो गये हो क्या? कोई इस तरह घर की लक्ष्मी पर हाथ छोड़ता है! तुम्हें यह रोग न था। क्या हीरा की छूत तुम्हें भी लग गयी।
होरी ने पालागन करके कहा -- महाराज, तुम इस बखत न बोलो। मैं आज इसकी बान छुड़ाकर तब दम लूँगा। मैं जितना ही तरह देता हूँ, उतना ही यह सिर चढ़ती जाती है।
धनिया सजल क्रोध में बोली -- महाराज तुम गवाह रहना। मैं आज इसे और इसके हत्यारे भाई को जेहल भेजवाकर तब पानी पिऊँगी। इसके भाई ने गाय को माहुर खिलाकर मार डाला। अब जो मैं थाने में रपट लिखाने जा रही हूँ तो यह हत्यारा मुझे मारता है। इसके पीछे अपनी ज़िन्दगी चौपट कर दी, उसका यह इनाम दे रहा है।
होरी ने दाँत पीसकर और आँखें निकालकर कहा -- फिर वही बात मुँह से निकाली। तूने देखा था हीरा को माहुर खिलाते?
'तू क़सम खा जा कि तूने हीरा को गाय की नाँद के पास खड़े नहीं देखा? '
'हाँ, मैंने नहीं देखा, क़सम खाता हूँ। '
'बेटे के माथे पर हाथ रख के क़सम खा! '
होरी ने गोबर के माथे पर काँपता हुआ हाथ रखकर काँपते हुए स्वर में कहा -- मैं बेटे की क़सम खाता हूँ कि मैंने हीरा को नाँद के पास नहीं देखा। धनिया ने ज़मीन पर थूक कर कहा -- थुड़ी है। तेरी झुठाई पर। तूने ख़ुद मुझसे कहा कि हीरा चोरों की तरह नाँद के पास खड़ा था। और अब भाई के पक्ष में झूठ बोलता है। थुड़ी है! अगर मेरे बेटे का बाल भी बाँका हुआ, तो घर में आग लगा दूँगी। सारी गृहस्थी में आग लगा दूँगी। भगवान्, आदमी मुँह से बात कहकर इतनी बेसरमी से मुकुर जाता है।
होरी पाँव पटककर बोला -- धनिया, ग़ुस्सा मत दिखा, नहीं बुरा होगा।
'मार तो रहा है, और मार ले। जा, तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मारकर तब पानी पियेगा। पापी ने मारते-मारते मेरा भुरकस निकाल लिया, फिर भी इसका जी नहीं भरा। मुझे मारकर समझता है मैं बड़ा वीर हूँ। भाइयों के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है, पापी कहीं का, हत्यारा! '
फिर वह बैन कहकर रोने लगी -- इस घर में आकर उसने क्या नहीं झेला, किस किस तरह पेट-तन नहीं काटा, किस तरह एक-एक लत्ते को तरसी, किस तरह एक-एक पैसा प्राणों की तरह संचा, किस तरह घर-भर को खिलाकर आप पानी पीकर सो रही। और आज उन सारे बलिदानों का यह पुरस्कार! भगवान् बैठे यह अन्याय देख रहे हैं और उसकी रक्षा को नहीं दौड़ते। गज की और द्रौपदी की रक्षा करने बैकुंठ से दौड़े थे। आज क्यों नींद में सोये हुए हैं।
जनमत धीरे-धीरे धनिया की ओर आने लगा। इसमें अब किसी को सन्देह नहीं रहा कि हीरा ने ही गाय को ज़हर दिया। होरी ने बिलकुल झूठी क़सम खाई है, इसका भी लोगों को विश्वास हो गया। गोबर को भी बाप की इस झूठी क़सम और उसके फलस्वरूप आनेवाली विपित्त की शंका ने होरी के विरुद्ध कर दिया। उस पर जो दातादीन ने डाँट बतायी, तो होरी परास्त हो गया। चुपके से बाहर चला गया, सत्य ने विजय पायी। दातादीन ने शोभा से पूछा -- तुम कुछ जानते हो शोभा, क्या बात हुई?
शोभा ज़मीन पर लेटा हुआ बोला -- मैं तो महाराज, आठ दिन से बाहर नहीं निकला। होरी दादा कभी-कभी जाकर कुछ दे आते हैं, उसी से काम चलता है। रात भी वह मेरे पास गये थे। किसने क्या किया, मैं कुछ नहीं जानता। हाँ, कल साँझ को हीरा मेरे घर खुरपी माँगने गया था। कहता था, एक जड़ी खोदना है। फिर तब से मेरी उससे भेंट नहीं हुई।
धनिया इतनी शह पाकर बोली -- पण्डित दादा, वह उसी का काम है। सोभा के घर से खुरपी माँगकर लाया और कोई जड़ी खोदकर गाय को खिला दी। उस रात को जो झगड़ा हुआ था, उसी दिन से वह खार खाये बैठा था।

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